नागरिकता संशोधन कानून के लागू होने के बाद, देश में विवाद बढ़ गया है। कई विरोधी दलों और राजनीतिक नेताओं ने इसे धार्मिक और संविधानिक बुनियादों पर खतरा माना है।
ओवैसी ने नागरिकता के मुद्दे को समानता और न्याय के संदर्भ में उठाया है। उन्होंने कहा है कि अल्पसंख्यक समुदायों को अलग-थलग करने का प्रयास धार्मिक और संविधानिक मूल्यों के खिलाफ है।
असदुद्दीन ओवैसी की सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका ने नागरिकता संशोधन कानून के माध्यम से विभाजन को रोकने की मांग की है। यह नहीं सिर्फ एक राजनीतिक मुद्दा है बल्कि धार्मिक और संविधानिक मूल्यों के संदर्भ में भी महत्वपूर्ण है।
सुप्रीम कोर्ट में नागरिकता संशोधन के मुद्दे पर ओवैसी की मांग
भारतीय राजनेता असदुद्दीन ओवैसी ने हाल ही में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की है। उन्होंने CAA को लेकर सरकार की योजनाओं पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह कानून निशाना बनाने की योजना है और इसके तत्काल कार्यान्वयन पर रोक लगाई जानी चाहिए।
ओवैसी की मांग: CAA और NRC के गठजोड़ के खिलाफ
ओवैसी ने सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में अपील की है कि CAA के साथ नागरिकता रजिस्टर का (NRC) गठन करने की योजना कानून के माध्यम से अपवित्र है। उनका कहना है कि इससे भारतीय मुस्लिमों को निशाना बनाया जा रहा है।
CAA: धार्मिक और सांविधिक पहलू
ओवैसी ने धर्म के आधार पर किसी को नागरिकता प्रदान करने के खिलाफ होने का विरोध किया और कहा कि ऐसा कोई कानून बनाया नहीं जा सकता। उनके अनुसार, ऐसा करना समानता के अधिकार के खिलाफ है।
नागरिकता संशोधन का प्रावधान
CAA, 2019 का प्रमुख प्रावधान है कि 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए बिना दस्तावेज वाले गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान की जाए। इसे लागू करने के बाद ओवैसी के मुताबिक, सरकार को विशेष समुदायों को अलग-थलग करने का आरोप लगाया गया है।
सुप्रीम कोर्ट की भूमिका
ओवैसी की इस अपील पर सुप्रीम कोर्ट की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। यह समय बताएगा कि क्या सरकार के द्वारा किए गए कदम संविधान के मानकों के अनुसार हैं या नहीं।
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