साल 2020 के किसान आंदोलन को अभी कुछ साल ही बीते थे की एक बार फिर भारत में किसान आंदोलन शुरू हो चुका है. एक बार फिर किसान अपनी मांगों को लेकर दिल्ली कूच करने की कोशिश कर रहे है उन्हे पुलिस प्रशासन ने शंभू बॉर्डर और सिंधु बॉर्डर पर रोककर रखा है 12 फरवरी (सोमवार) को संयुक्त किसान मोर्चा ने दिल्ली कूच का एलान किया था जिसके बाद ‘दिल्ली चलो’ के नारे के साथ पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों के किसान इस आंदोलन में शामिल हुए
भारत जैसे कृषि प्रधान देश में किसानों को अन्नदाताओं का दर्जा दिया जाता है. क्योंकि किसान ही होते है जो दिन रात खेतों में कड़ी मेहनत कर, अपना खून पसीना बहाकर हमारे लिए अनाज उपजाते है. इन्ही के कड़े प्रयास से हमारे घर के चूल्हे जलते है. लेकिन फिर भी किसानों को अपने हक के लिए लड़ाइयां लड़नी पड़ती है।
उन्हें अपनी मागों को सरकार के आगे रखने और उन्हें पूरा करवाने के लिए आंदोलन का सहारा लेना पड़ता है. खेर, यह पहली बार नहीं है जब देश में किसान आंदोलन और विरोध प्रदर्शन हो रहे है इससे पहले भी कई बार किसान अपनी मागों को पूरा करवाने के लिए सरकार के खिलाफ खड़े हुए है. भारत में किसान आंदोलन का काफी पुराना है, आइए एक एक कर जानते है की कब और क्यों हुए भारत में किसान आंदोलन.
किसान आंदोलन : एक बार फिर शुरू हुआ किसान आंदोलन, जानिए क्या है किसानों की मांग?
किसान आंदोलन का इतिहास
1. नील विद्रोह – किसान आंदोलन
नील विद्रोह, भारत में पहला प्रमुख किसान आंदोलन माना जाता है जो की 1859 से 1860 तक चला. यह गरीब किसानो का ब्रिटिश सरकार के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन था. उस समय छपाई के लिए नील की डिमांड काफी बढ़ रही थी जिसके चलते ईस्ट इंडियन कंपनी नील की खेती पर अधिक ज़ोर दे रहे थे अंग्रेजी व्यापारियों को अधिक से अधिक मुनाफा कमाने के लिए सस्ते किसान और मजदूरों की आवश्कता थी, जिसके लिए वे जमींदारों से भूमि ले कर बिना पैसे दिए ही किसानों से जबरन नील की खेती करवाते थे.
लेकिन एक समय ऐसा भी आया जब किसानों ने एक जुट हो कर, अपने हक के लिए आवाज उठाई और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया. इस आंदोलन में किसानों की जीत हुई, और बाद में नील की खेती ही बंद हो गई.
2. चंपारण सत्याग्रह – किसान आंदोलन
चंपारण सत्याग्रह महात्मा गांधी के नेतृत्व में 1917 के शुरू हुआ था. यह आंदोलन ब्रिटिश जमींदारों द्वारा किसानों पर थोपी गई दमनकारी नील बागान प्रणाली के खिलाफ हुआ था. महात्मा गांधी का आजादी के समय उनके पहले सफल अहिंसक प्रतिरोध का आंदोलन चंपारण सत्याग्रह ही था जिसमें उन्होंने देश के किसानों की दुर्दशा की ओर ब्रिटिश सरकार का ध्यान आकर्षित किया.
इस आंदोलन से अंग्रेजों की मुश्किलें बढ़ रही थी, यहां तक की ब्रिटेन में बैठी महारानी विक्टोरिया तक इस विद्रोह की ख़बर फैल गई थी, जिसके बाद किसानों के पक्ष में ब्रिटिश मजिस्ट्रेट को ये नोटिस जारी करना पड़ा की रैयतों को अनुदान मान्य पर विवश नहीं किया जा सकता. यह किसानों के लिए ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ एक बड़ी जीत थी.
3. खेड़ा सत्याग्रह – किसान आंदोलन
साल 1917 ई. में सुखा पड़ने के कारण किसानों की फसल नष्ट हो गई, जिससे किसानों को काफी नुकसान हुआ. लेकिन इसके बाबजूद भी ब्रिटिश सरकार ने किसानों का लगान माफ नहीं किया. किसानों ने ब्रिटिश सरकार से गुहार लगाई लेकिन उनकी बात न मनाते हुए उनपर लगातार लगाना देने का दवाब डाला गया. जिसके बाद महात्मा गांधी ने किसानों को सत्याग्रह करने की सलाह दी. गांधी जी अपील पर वल्लवभाई पटेल भी अपनी वकालत छोड़ कर किसानों की इस लड़ाई में शामिल हुए और गांव के घर घर घूम कर किसानों से प्रतिज्ञा पत्र पर हस्ताक्षर कराया.
जब अंग्रेजो को इस बात की खबर मिली तब उन्होंने किसानों के मवेशी और अन्य चीजों को ज़ब्त कर लिया. महात्मा गांधी ने किसानों से कहा कि जो खेत बेजा कुर्क कर लिए गए है उनकी फसल काट ले आएं, जिसके बाद किसान फसल कटने गए लेकिन वे अंग्रेजो द्वार पकड़े गए, उनके खिलाफ मुकदमा चला और किसानों को सज़ा भी हुई. बाद में ब्रिटिश सरकार ने बिना किसी सार्वजनिक घोषणा के ही गरीब किसानो से लगान की वसूली बंद कर दी और इस तरह से किसानों की जीत हुई.
4. बिजोलिया किसान आंदोलन
बिजोलिया किसान आंदोलन 1897 से 1941 तक चला था जो की किसानों पर अत्यधिक लगान लगाने के विरोध में किया गया था. इसे भारत का पहला अहिंसक किसान आंदोलन माना जाता है. बिजोलिया किसान आंदोलन राजस्थान से शुरू होकर पूरे देश में फैलने वाला एक संगठित किसान आंदोलन था.
जिसके पीछे के कारण, किसानों पर लगाए गए 84 विभिन्न प्रकार के कर (tax) थे, जैसे लाटा कुंता कर (खेत में खड़ी फसल के आधार पर कर), चवरी कर (किसान की बेटी के विवाह पर), तलवार बंधाई कर (नए जागीरदार बनने पर कर) आदि. यह आंदोलन इतिहास का सबसे लंबा चलने वाला किसान आंदोलन बना, जो की करीब 44 सालो तक चला और इसमें महिला नेत्रियो ने भी प्रमुखता से हिस्सा लिया था.
5. तेलंगाना किसान सशस्त्र संघर्ष – किसान आंदोलन
तेलंगाना किसान सशस्त्र संघर्ष, एक कम्युनिस्ट नेतृत्व वाला आंदोलन था जो 1946 से 1951 के बीच शुरु हुआ था इस आंदोलन का उद्देश्य किसानों को सामंती उत्पीड़न से मुक्त कराना और भूमि पुनर्वितरण के लिए लड़ना था. इस आंदोलन में किसानों ने भूमि सुधार, उचित मजदूरी और शोषणकारी प्रथाओं को समाप्त करने की मांग की, 1951 में भारत सरकार द्वारा इस आन्दोलन को दबा दिया गया.
6. अखिल भारतीय किसान सभा – किसान आंदोलन
अखिल भारतीय किसान सभा (All India Kisan Sabha) 1936 में स्थापित एक किसान संगठन है, यह किसानों के अधिकारों, कृषि सुधारों और ग्रामीण विकास की वकालत में सक्रिय रूप से शामिल रहा है. 1980 और 1990 के दशक मे इस संगठन ने ऋण, भूमिहीनता और किसानों को प्रभावित करने वाली सरकारी नीतियों जैसे मुद्दों को संबोधित करने के लिए पूरे भारत में कई विरोध प्रदर्शन और आंदोलन आयोजित किए हैं.
7. तेभागा आंदोलन – किसान आंदोलन
सन् 1946 में बंगला का तेभाग आंदोलन एक सर्वाधिक सशक्त आंदोलन था, जिसमे किसानों ने ‘फ्लाइड कमीशन’ की सिफारिश के अनुरूप लगान की दर घटाकर एक तिहाई करने के लिए संघर्ष शुरू किया था. बंगला का तेभागा आंदोलन फसल का दो तिहाई हिस्सा उत्पीड़ित बटाईदार किसानों को दिलाने के लिए किया गया था, जो बंगाल के 28 में से 15 जिलों में फैला, विशेषकर उत्तरी और तटवर्ती सुन्दरबन क्षेत्रों में. ‘किसान सभा’ के आह्वान पर लड़े गए इस आंदोलन में लगभग 50 लाख किसानों ने भाग लिया और इसे खेतिहर मजदूरों का भी व्यापक समर्थन प्राप्त हुआ.
8. किसान आंदोलन 2020
साल 2020 में शुरू हुआ कृषि आंदोलन, सरकार द्वारा पारित तीन कृषि कानून के खिलाफ एक आंदोलन था जिसमे पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान मुख्य रूप से शामिल थे. ये तीन कृषि कानून थे- किसान उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम का समझौता, और आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम. करीब एक साल तक चले इस आंदोलन में कई किसानों की जान गई लेकिन अतः सरकार ने किसानों के आगे अपने घुटने टेक दिए और कृषि कानूनों को वापस ले लिया.